चित्रकला में रूप और उसका महत्व

रूप From

           कलाकार जैसे ही चित्र भूमि पर अंकन प्रारंभ करता है रूप का निर्माण प्रारंभ हो जाता है जो भावी कलाकृति को अर्थ प्रदान करता है साथ ही अपने साथ विभिन्न प्रकार की समस्याएं भी लाता है जैसे ताल विभाजन रूप का प्रभाव आदि कलाकार जब चित्र भूमि पर रूप का निर्माण करता है तो चित्र दो भागों में विभक्त हो जाता है
एक सक्रिय आकार (active From) दूसरा सहायक आकार (negative From)
  • सक्रिय आकार (active or positive or committed From) चित्र तल (space) वह सब्जेक्ट को सक्रिय होकर सहयोग प्रदान करता है वह सक्रिय कार कहलाता है जैसे अजंता का मरणासन्न राजकुमारी चित्र
  • दूसरा सहायक आकार (negative and committed From) सहायक आकार वह  तल (space)  होता है जो मौन होते हुए भी विषयवस्तु को अर्थ प्रदान करता है
            एक कलाकृति में सक्रिय और सहायक दोनों तारों का अत्यधिक महत्त्व है यह क्रिया परस्पर अनुभव के द्वारा और विकसित होती जाती है दोनों के परस्पर तालमेल से कलाकृति को और अर्थ मान बनाया जाता है इन दोनों के समुचित इस्तेमाल से कला सिद्धांत के सारे तत्वों में उचित सामंजस्य स्थापित किया जाता है किनके स्थान में परिवर्तन करके भी कलाकार मन वांछित प्रभाव उत्पन्न कर सकता है

  रूप की परिभाषा definition of farm

जिसका अपना निश्चित आकार तथा वर्ण होता है उसे रूप कहते हैं रूप यथार्थ जगत से भी संबंधित हो सकते हैं और कल्पनाजन्य रूपों का कलाकार निर्माण भी करता है यदि इसको और स्पष्ट करें तो रूप किसी भी पदार्थ का चित्र भूमि पर प्रथम दृश्य प्रस्तुतीकरण है
  • F=First
  • O=Organic
  • R=Reveletoin of
  • M=Matter

रूप का वर्गीकरण classification of form

साधारणतया रूप दो प्रकार के होते हैं

1 नियमित= सममित ( Symmetrical form )

  नियमित रूप व रूप होते हैं जो अपने अर्द्ध भाग के विलोम होते हैं जैसे घन, व्रत, आयत, गिलास आदि नियमित रूपों में कलाकार कल्पना का प्रयोग कम कर पाता है जिसके कारण इनमें एक रसता ज्यादा दिखाई पड़ती है

2 अनियमित  रूप=  असममित ( Asymmetrical form)

     अनियमित रूप वह रूप होता है जिसका अर्द्ध भाग शेष भाग से मिलता जुलता नहीं होता है जैसे भी समकोण चतुर्भुज त्रिभुज के केतली  आदि

रूप के प्रभाव effect of form

1 आयताकार रूप (Rectangular Form)
शक्ति, स्थायित्व, एकता
2 त्रिभुजाकार (Triangular Form)
सुरक्षा, विकास, शाश्वतता
3 विलोम त्रिभुजाकार (Reverse Triangular Form)  अशांति,  लिप्तता लिखता
4अंडाकार(Ovals)
सौंदर्य,नित्यता, सृजनात्मकता
5 वृत्ताकार ( Circular)
पूर्णता, आकर्षण, गति, समानता, विशालता

रूप प्रमाण तथा वर्ण (forms it is proportion and colour)

      रूप को एक रसता से बचाने के लिए रूप प्रमाण तथा वर्ण के आपसी संबंध को जानना कलाकार के लिए अत्यंत आवश्यक है संसार में अनेक रूप विद्यमान हैं कलाकार इन रूपों का चयन अपनी रूचि के अनुसार करता है वह इनमें अपनी अभिव्यक्त की सार्थकता के अनुसार व्यापक या संकुचित परिवर्तन भी कर सकता है इसके लिए वह पूर्णरूप से स्वतंत्र है कलाकार निम्न विधियों को अपनाकर रूप की एक रसता से बच सकता है

1 कलाकार आकृतियों के परिणाम में भी अंतर करके रूप में विविधता उत्पन्न कर सकता है ऐसे संयोजन असम संतुलन सिद्धांत के नियम के अधीन है उदाहरण के लिए अजंता की गुफा संख्या 17 का माता पुत्र चित्र
2 कलाकार छाया तथा प्रकाश के द्वारा भी रूप को रोचक बना सकता है साथ ही आकृतियों के मान में परिवर्तन करके रूप सौंदर्य में वृद्धि की जा सकती है एक ही रंग की विविधता तान लगाकर या बहूवर्णी तान के प्रयोग से भी रूप को और अधिक अर्थवान बनाया जाता है यह प्रयोग कलाकार के अनुभव एवं लगातार साधना पर निर्भर करता है कि वह रंगो के विविध तानों का प्रयोग किस प्रकार रूप को अर्थवान बनाने में प्रयुक्त कर पाएगा
3 रूप को पोत (texture) का कुशल अनुकरण करके भी रुचिकर बनाया जा सकता है पोत के द्वारा आकार के प्रभाव में  भी अंतर उत्पन्न हो जाता है यदि कलाकार सृजित पोत में निपुण है तो वह इस विविधता का उत्तम प्रकार से निर्वहन कर सकेगा
4 रूप स्थूल realistic form या सूक्ष्म abstract from हो सकता है यह कलाकार की व्यक्तिगत रुचि पर निर्भर करता है कि वह किस प्रकार के रूप का अपनी अभिव्यक्ति के लिए चुनाव करता है फिर भी भारतीय शास्त्रों में रूप और प्रमाण की कुछ मुद्राएं सुझाई गई हैं राक्षस देवता एवं साधारण मनुष्य आदि के प्रमाण में अंतर को स्पष्ट रूप से बताया गया है

रूप और अर्थसार home and context

  
      भारतीय कला भाव प्रधान रही है इसलिए रूप का अर्थवान होना महत्वपूर्ण है अर्थवान रूप चित्र की गंभीरता को दर्शक के सम्मुख प्रस्तुत करता है तथा उसे रस हीनता के दोष से भी बचाता है प्रकृति में विविध प्रकार के रूपों का समावेश है तथा कलाकार अपनी कल्पना के अनुसार भी रूपों में परिवर्तन कर सकता है पर रूप का चयन विषय के अनुसार करता है रूपों की विविधता दर्शक को अपनी तरफ सदैव आकर्षित करती है भले ही रूप में भाव प्रछन रूप में विद्यमान रहता है फिर भी रूप भाव को संप्रेषित करता है  यदि रुप को शरीर कहा जाए तो अर्थ कला का प्राण है कालिदास ने रूप या शब्द को जगत माता और अर्थ को जगतपिता कहकर सर्वाधिक अभ्यर्थना की है इस प्रकार अर्थसार रूप में समाहित अनेक अनुभूतियों का वाह्य कलेवर है
 अर्थसार दो प्रकार का होता है

1 सामुदायिक अर्थसार collective context

        यह उन प्रकार के चित्रों में दिखाई देता है जहां पर चित्र एक से अधिक रूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो धार्मिक सांस्कृतिक सामाजिक या राजनीतिक हो सकते हैं जो देश काल के संबंधों को भी दर्शाते हैं बीसवीं शताब्दी से पूर्व की कला प्रयाह सामुदायिक अर्थसार के लिए रही है अजंता इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है

2 व्यक्तिगत अर्थसार individual context

        बीसवीं शताब्दी मैं औद्योगिक क्रांति ने समाज के प्रत्येक पहलू को परिवर्तित कर दिया अब जो प्राचीन कुचक्रों को तोड़कर नवीन दृष्टिकोण से अपना  कर जीवन यापन करने लगा है वह अब धार्मिक सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टिकोण से अपने आपको काफी समर्थ बना चुका है वह अपनी शिक्षा और सामर्थ्य केवल से अपना व्यक्तिगत जीवन और अधिक प्रगतिशील बना रहा है समाज की पुरानी परंपराएं टूट रही हैं उनके स्थान पर नई परंपराएं जन्म ले रही हैं जिसमें व्यक्ति प्रधान है जो तर्क के आधार पर समस्याओं का परीक्षण कर उनका समाधान ढूंढने का प्रयास करता है जो भूत प्रेत शुभ अशुभ जादू टोना आदि से काफी आगे निकल चुका है इन सभी बदलावों का परिणाम उसके सृजन पर भी पड़ा तभी तो एक के बाद एक वाद आते गए जिनमें व्यक्तिगत दृष्टिकोण महत्वपूर्ण रहा है इसके साथ ही कलाकार ने अपनी मानसिक कल्पनाओं को भी सृजन में अत्यधिक स्थान दिया जो कला के लिए काफी सुखद रहा तथा व्यक्तिगत दृष्टिकोण को भी महत्वपूर्ण बना दिया वर्तमान की कला व्यक्ति वादी दृष्टिकोण से प्रेरित है यही कारण है कि आज कलाकार समाज को देखकर अपनी निजी प्रतिक्रिया देता है जो संपूर्ण समाज का प्रतिनिधित्व करते हुए भी उसके अपनी निजी विचार होते हैं

रूप और अन्तराल Form and space

     रुप और अंतराल में उचित सामंजस्य होना आवश्यक है रूप अंतराल के महत्व को बढ़ा भी सकता है और कम भी कर सकता है यही नियम अंतराल पर भी लागू होता है जो रूप के महत्व को कम या अधिक कर सकता है यद्यपि अभी तक कोई ऐसा निश्चित सिद्धांत नहीं आया है जो इन दोनों में उचित सामंजस्य की बात करता हो यह कलाकार के अनुभव पर निर्भर करता है और नित्य प्रतिदिन में नई संभावनाएं भी लेकर आता है जो एक अन्वेषण का विषय रहा है राजस्थानी अजंता पहाड़ी मुगल आदि शैलियों में रूप और अंतराल का भिन्न-भिन्न संबंध देखने को मिलता है और सभी में अपनी मौलिकता निखर कर आई है रूप और अंतराल दोनों में छुपी हुई ऊर्जा होती है इसका प्रयोग समय-समय पर कलाकार अपनी सामर्थ्य के अनुसार करते हैं कलाकार के लिए यह दोनों प्रयोग का भी विषय रही हैं जिनके प्रयोग से कलाकार नए-नए आयामों को गढ़ता आ रहा है
     

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